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Jodhpur King Umaid Singh
आधुनिक मारवाड़ के पायलट महाराजा: श्री उम्मेद सिंह जी
मारवाड़ रियासत के महाराजा सरदार सिंह जी के पुत्र उम्मेद सिंह जी का जन्म 1903 में हुआ था तथा मृत्यु 1947 में हुई थी।
उनके काल में रियासत का अभूतपूर्व विकास हुआ। अस्पताल, बाँध, उद्यान, विद्यालय व हवाई अड्डे जैसी अनेक सुविधाएँ जनता को मिलने लगी। विश्वप्रसिद्ध उम्मेद भवन पैलेस भी उन्हीं के कार्यकाल में बना।
जिस दौर (1903) में उम्मेद सिंह जी का जन्म हुआ था उस वर्ष राइट ब्रदर्स ने पहली बार हवाई जहाज उड़ाया था। उम्मेद सिंह जी ने 16 वर्ष की अल्पायु में 1918 में सत्ता संभाली थी। सही मायने में 1924 से उन्होंने पूर्ण अधिकार के साथ जोधपुर रियासत का हर दृष्टिकोण से विकास करना प्रारंभ किया। 1909 में राइट ब्रदर्स ने विमान निर्माण कंपनी की स्थापना की। उसके बाद आवागमन व सामरिक दृष्टि से वायुयानों की मांग बढ़ने लगी। 1924 में अमेरिका के दो वायुयानों ने पूरी धरती का 44300 किलोमीटर का चक्कर लगाकर सनसनी फैला दी थी। इस घटना से प्रेरित होकर उम्मेद सिंह जी ने 1924 में जोधपुर में तथा 1925 में उत्तरलाई में सार्वजनिक निर्माण विभाग की सहायता से हवाई अड्डों का निर्माण करवाया। 1931 में उन्होंने दिल्ली फ्लाइंग क्लब से विमान संचालन का अनुभव लेकर पायलट का लाइसेंस हासिल किया। उसी वर्ष उन्होंने जोधपुर फ्लाइंग क्लब की स्थापना भी की जिसमें देश विदेश के कुछ पायलट व तकनीकी रूप से जानकार व अनुभवी लोग शामिल हुए।

मारवाड़ के शासक महाराजा उम्मेद सिंह का जीवन परिचय
जोधपुर फ्लाइंग क्लब की शुरुआत में क्लब में दो टाइगर मॉथ, एक लीपोर्ड मॉथ व दो लीक हीड वायुयान शामिल किए गए। साथ ही मारवाड़ के लगभग सभी परगनों में हवाई पट्टी बनाने के आदेश दिए ताकि हवाई आवागमन सुलभ हो सके।
1932-33 तक जोधपुर हवाई अड्डे पर 1 लाख 36 हजार 830 रुपये व नो आने व उत्तरलाई हवाई अड्डे पर 9 हजार 610 रुपये 5 आने 9 पाई रुपये खर्च हुए थे।
1935 तक जोधपुर फ्लाइंग क्लब की सदस्य संख्या 50 हो चुकी थी जिसमें से 10 लोग देश के श्रेष्ठ पायलट प्रशिक्षक थे; साथ ही यह देश के श्रेष्ठतम पायलट प्रशिक्षण स्थलों में से एक था।
1935 के वर्ष में रात्रिकाल में भी 38 विमान रात्रिकाल में भी एयरपोर्ट पर उतरे थे। यह वह दौर था जब छत पर सोये लोग हवाई जहाज के निकलने के बाद भी रात्रिकाल में घण्टों तक बतियाते महाराजा साहब का गुणगान करते रहते थे और कई तरह के काल्पनिक कयास लगाते थे।
जोधपुर रियासत के कुछ परगनों में पब्लिक लैंडिंग ग्राउंड्स थे तो कुछ परगनों में प्राइवेट लैंडिंग ग्राउंड्स बनवाए गए। हवाई जहाज के लिए ईंधन आपूर्ति के स्टेशन भी बनवाए गए।
1938 तक जोधपुर रियासत के 23 परगनों पर हवाई जहाज को उतारने की सुविधा हो गयी थी। इतने हवाई अड्डों की बढ़ती संख्या से ब्रिटिश सरकार भी चिन्तित हो गयी क्योंकि उनका सामरिक उपयोग कोई भी ब्रिटिश विरोधी ताकत कभी भी कर सकती थी।
वर्ष 1929- 30 में 99 वायुयान,1930-31 में 249 वायुयान, 1931-32 में 340 वायुयान, 1932-33 में 418 वायुयान व वर्ष 1933-34 में 451 वायुयान जोधपुर हवाई अड्डे पर उतरे। 1936 में जोधपुर हवाई अड्डे पर 761 वायुयान उतरे। उस वक्त तक जोधपुर एक जाना माना अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बन चुका था। देश विदेश के पायलट व वीआईपी लोगों के रुकने के लिए उम्मेद सिंह जी ने स्टेट होटल का निर्माण भी करवाया था जिसे आज जोधपुर में 'ऑफिसर्स मेस' के नाम से जाना जाता है। इतने ट्रैफिक से रियासत की आय भी बढ़ी।
महाराजा के पास एक से बढ़कर एक विमान थे। उस समय उनके पास 'परसिवल गल' वायुयान था जिससे तेज वायुयान देश में किसी के पास नहीं था। 1935 तक महाराजा 200 घंटों से अधिक की उड़ान भर चुके थे। 1936 में अजमेर के एक व्यवसायी भागचन्द सोनी ने उम्मेद सिंह जी को लेपर्ड मॉथ हवाई जहाज भेंट किया था।
जोधपुर फ्लाइंग क्लब कई रोचक करतब के कार्यक्रम भी आयोजित करता था। उस दौर में महाराजा चाहते थे कि आम लोग भी हवाई जहाज का आनन्द ले इस हेतु आम नागरिकों से भी 10 रुपया लेकर शहर के ऊपर एक चक्कर लगवाया जाता था।
महाराजा के प्रयासों से ही जोधपुर भारत का प्रसिद्ध सेना ट्रेनिंग केंद्र भी बना। उनकी सेवाओं से प्रभावित होकर ही ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ऑनरेरी एयर कोमोडोर, ऑनरेरी एयर वाईस मार्शल व ऑनरेरी लेफ्टीनेंट जनरल की उपाधियां दी। 9 जून 1947 को अपेंडिक्स के एक आपरेशन के पश्चात माउन्ट आबू में महाराजा की मृत्यु हो गयी।
दुर्भाग्यपूर्ण था कि 1952 में महाराजा उम्मेद सिंह जी के पुत्र हनवंत सिंह जी का निधन 6 सीटर वायुयान दुर्घटना में हुआ था। राजस्थान के लोकप्रिय नेता जयनारायण व्यास को हराकर वे जोधपुर लौट रहे थे तब उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त होकर जोधपुर की सेंट्रल जेल के पास गिरा था। जोधपुर के वर्तमान महाराजा गजसिंह जी द्वितीय हनवंत सिंह जी के पुत्र है।
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By: डॉ अर्जुन सिंह साँखला
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