मेहरानगढ़ किले पर किये गए आक्रमणों का इतिहास

 

Mehrangarh fort Attacks

 

⬧ प्रथम आक्रमण
प्रथम आक्रमण जोधपुर शहर के संस्थापक राव जोधा जी के पुत्र तथा बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीका जी ने किया था। राव जोधा जी ने जब राव बीका जी को बीकानेर का शासक बनवाया तब यह तय हुआ था कि बीका जी के लिए जोधपुर से छत्र चँवर आदि राज चिह्न भेजे जायेंगे। लेकिन राव जोधा के बाद के शासक राव सूजा जी ने इस परंपरा की अवहेलना की। बीका जी ने इस पर क्रोधित होकर अपने कई समर्थकों को साथ लेकर जोधपुर पर आक्रमण किया। दस दिन तक दुर्ग को घेरे रखा और इस कारण किले में रसद पानी की कमीं हो गयी थी। सूजा जी की माता जसमादे ने बीका जी के साथ समझाईश की और भीषण संघर्ष टल गया।

⬧ द्वितीय आक्रमण

राव मालदेव मारवाड़ के सबसे महान शासकों में से एक थे। शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया था। 'गिरिसुमेल युद्ध' में धोखे से उसने युद्ध तो जीत लिया था लेकिन जैता व कूंपा के नेतृत्व में राजपूत सेना ने जिस अंदाज से शाही सेना का मुकाबला किया था उसे देखकर शेरशाह को कहना पड़ा "मैं मुट्ठीभर बाजरे के लिए दिल्ली की सल्तनत खो बैठता" उस युद्ध को जीतकर वह जोधपुर की ओर आगे बढ़ा और मेहरानगढ़ की दुर्गरक्षक सेना के साथ मुकाबला हुआ लेकिन शेरशाह की सेना की संख्या बड़ी होने के कारण उसका दुर्ग पर अधिकार हो गया। मालदेव जी सिवाना के पहाड़ी प्रदेश में चले गए और वहाँ से संघर्ष जारी रखा। लगभग 1 वर्ष तक शेरशाह के आधिपत्य में किला रहा। इस दौर में शेरशाह ने किले में एक मस्जिद का भी निर्माण करवाया था।

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⬧ तृतीय आक्रमण

मारवाड़ के 'महाराणा प्रताप' कहे जाने वाले राव चंद्रसेन जी के समय मुगल बादशाह अकबर के समर्थक चन्द्रसेन के भाई राम जी ने नागौर के मुग़ल मनसबदार हुसैन कुली की सहायता से जोधपुर पर आक्रमण किया। लेकिन इसमें कुछ ज्यादा सफलता नहीं मिली। अकबर ने पुनः मुज्जफर खान व हुसैन कुली की संयुक्त सेना को आक्रमण करने के लिए भेजा। लगातार दुर्ग पर 8 महीने का घेरा सेना ने बनाये रखा। किले में रसद व जल की भारी कमीं के चलते राव चन्द्रसेन जी को दुर्ग छोड़ कर जाना पड़ा। उन्होंने अलग अलग जगहों से अपना राज्य पुनः प्राप्त करने का संघर्ष जारी रखा।



⬧ चतुर्थ आक्रमण

महाराजा जसवन्त सिंह जी की 1678 में जमरूद में मृत्यु हो गयी थी। उस समय उनका कोई उत्तराधिकारी मौजूद नहीं होने के कारण दिल्ली के शासक औरंगजेब ने जोधपुर के किले पर अधिकार कर लिया परन्तु दुर्गादास जी एवं मुकनदास जी खींची जैसे अन्य अनेक स्वामिभक्त सामन्त वीरों के साथ मिलकर महाराजा अजीतसिंह जी ने औरंगजेब द्वारा नियुक्त किलेदार जाफर कुली को हराया तथा किले पर पुनः अधिकार हासिल किया।

⬧ पंचम आक्रमण
राजपूत शासकों के आपसी झगड़े के कारण जोधपुर के महाराजा अभय सिंह जी ने 1740 में बीकानेर पर आक्रमण किया था। तब वहॉं के शासक जोरावरसिंह जी ने जयपुर नरेश सवाई जयसिंह जी से सहायता मांगी थी। जयसिंह जी ने किले पर आक्रमण भी किया घेरा भी डाले रखा लेकिन अभयसिंह जी के लौटने पर अपना घेरा हटा लिया। ऐसे में किला सुरक्षित रह गया।

⬧ छठा आक्रमण
राजकुमारी कृष्णा कुमारी (1794 - 1810) मेवाड़ उदयपुर के भीम सिंह जी की बेटी थीं। उनकी सगाई अल्पायु में ही जोधपुर के भीम सिंह जी से हुई थी किन्तु विवाह पूर्व ही उनके भावी पति भीम सिंह की 1803 में मृत्यु हो गयी। उसके बाद जोधपुर के मान सिंह तथा जयपुर के जगत सिंह सहित कई लोगों ने उनसे विवाह का प्रस्ताव किया। उनसे विवाह करने के इच्छुक लोगों में इतनी प्रतिद्वंदिता हुई कि युद्ध की स्थिति बन गयी।

ऐसे में जयपुर नरेश जगतसिंह, बीकानेर के सूरतसिंह तथा पिण्डारी मीर खान की सम्मिलित सेनाओं द्वारा 1807 में जोधपुर के मानसिंह जी पर आक्रमण किया गया। एक अनुमान के मुताबिक मानसिंह जी के पास सेना की संख्या 5 से 12 हजार ही थी जबकि संयुक्त शत्रु सेना लगभग 3 लाख थी। मेहरानगढ़ किले की 'डेढ कंगूरा' पोल पर आज भी तोपों के गोलों के निशान देखे जा सकते हैं। इस युद्ध में शत्रु सेना का लगभग 5 माह का घेरा रहा। कई घटनाओं में दोनों तरफ भारी जनहानि हुई। उन वर्षों में मारवाड़ में भीषण अकाल भी पड़ा था। रसद का अभाव दोनों सेनाओं को झेलना पड़ा। अनेक कारणों से महाराजा जगतसिंह जी को घेरा उठाकर जयपुर लौटना पड़ा।

16 वर्षीय राजकुमारी कृष्णा ने दुःखी होकर विषपान करके प्राणान्त करने का निर्णय लिया। कुछ स्रोतों के अनुसार उनको विष दिया गया।


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By: डॉ अर्जुन सिंह साँखला
 

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